दीन ए इलाही धर्म | Deen E Ilahi Dharm in Hindi

deen e ilahi dharm kisne chalaya  दीन-ए-इलाही के चार प्रमुख सिद्धांत  दीन-ए-इलाही का दूसरा नाम

दीन-ए-ईलाही का प्रतिपादन 1582 ईस्वी में मुगल शासक अकबर ने किया था। कुछ विद्वान इस धर्म तो कुछ इसे कई धर्मों का मिला जुला स्वरूप मानते हैं। आज हम इस दीन-ए-ईलाही से जुड़े सभी महत्वपूर्ण और परीक्षाउपयोगी तथ्यों के बारे में चर्चा करने वाले हैं। 

दीन-ए-इलाही क्या था? [Deen E Ilahi Dharm Kisne Chalaya]

अकबर ने 1582 ईस्वी में तौहीद-ए-इलाही (दैवीय एकेश्वरवाद) की घोषणा की जो बाद में दिन-ए-ईलाही (ईश्वर का धर्म) का नाम से विख्यात हुआ। वास्तविकता यह है कि दीन-ए-ईलाही किसी प्रकार का नया धर्म नहीं था। वह वैसे व्यक्तियों का समूह था जो अकबर के विचारों से सहमत थे और उसे अपना धार्मिक गुरु मानते थे। 

इस धर्म के लिए किसी धर्मग्रंथ, मंदिर-मस्जिद अथवा विशेष पूजा स्थल को नियत नहीं किया, बल्कि उसने नए धर्म को एक सैद्धांतिक स्वरूप प्रदान किया। सुलह-कुल की नीति को ध्यान में रखते हुए उसने सभी धर्मों की अच्छी बातों का समावेश अपने धार्मिक दर्शन में किया। 

दीन-ए-ईलाही वास्तव में सूफी सर्वेश्वरवाद पर आधारित एक विचार पद्धति थी जिसके प्रवर्तन की प्रेरणा मुख्य रूप से निजामुद्दीन औलिया के सुलह ए कुल या सार्वभौमिक सौहार्द से मिली थी। इस नवीन संप्रदाय का प्रधान पुरोहित अबुल फजल था। आईने-अकबरी में कुल 18 व्यक्तियों का नाम मिलता है जिन्होंने दीन-ए-ईलाही को पूरी तरह से ग्रहण किया था। 

हिंदुओं में केवल बीरबल ने ही इसे स्वीकार किया थल जबकि राजा भगवान दास व मान सिंह ने इसके सदस्य बनने से मना कर दिया था। 

दीन-ए-ईलाही के सदस्यता के द्वार सभी धर्मों के लोगों के लिए खुला था। शिष्यता ग्रहण करने का दिन रविवार निश्चित किया गया था। इस दिन सदस्यता ग्रहण करने वाले नवांगतुक हाथ में पगड़ी लेकर बादशाह के चरणों मे अपना शीश रख देते थे तथा बादशाह उसे उठाकर अपने हाथों से उसकी पगड़ी उसके सिर पर रखता था तथा गुरु के रूप में उसे गुरु मंत्र देता था। 

इसके सदस्य जब एक दूसरे से मिलते थे तो अल्लाह-औ-अकबर (अल्लाह महान है ) तथा जले जलालूह (उसके यश में वृद्धि हो) से एक दूसरे का सम्बोधन करते थे।  के सदस्यों को चरणों चहारगाना-ए-इलखास को पूरा करना होता था। विनसेट स्मिथ ने दीन-ए-ईलाही धर्म को मूर्खता का स्मारक कहा था। 

दीन-ए-ईलाही धर्म का सिद्धांत 

इस धर्म की 4 प्रमुख विशेषताएं थी। 
  1. गाय के मांस पर पूर्णतया प्रतिबंध था। 
  2. सूर्य को पृथ्वी का निर्माता माना गया था और इस वजह से रोजाना सुबह और शाम को सूर्य की पूजा होती थी। 
  3. पारसी धर्म के पवित्र अग्नि देवता को इस धर्म में भी पवित्र मानकर पूजा की जाती थी। 
  4. हिन्दुओ में प्रचलित हवन-अनुष्ठान आदि कार्यों को भी इसमें शामिल किया गया था। 

FAQ's 

प्रश्न : दीन-ए-ईलाही धर्म का दूसरा नाम क्या था?

उत्तर : इसे तौहीद-ए-इलाही (दैवीय एकेश्वरवाद) के नाम से भी जाना जाता था। 

प्रश्न : अकबर ने कौन सा धर्म चलाया था?

उत्तर : अकबर ने दीन-ए-ईलाही धर्म चलाया था। 

प्रश्न : दीन ए इलाही धर्म का मुख्य पुरोहित कौन था?

उत्तर :  इस नवीन संप्रदाय का प्रधान पुरोहित अबुल फजल था।

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